चलो जेसा भी हुआ, अच्छा हुआ या बुरा हुआ
मेरे जनाज़े पे रोने वालो मे कोई तो कम हुआ
मुसाफिर हूँ मैं तो, गुजर जाऊँगा एक दिन
पर मुझ पे क्या गुज़री उसका कभी मलाल हुआ?
Ashwini Sharma
चलो जेसा भी हुआ, अच्छा हुआ या बुरा हुआ
मेरे जनाज़े पे रोने वालो मे कोई तो कम हुआ
मुसाफिर हूँ मैं तो, गुजर जाऊँगा एक दिन
पर मुझ पे क्या गुज़री उसका कभी मलाल हुआ?
Ashwini Sharma
झूठे दिलासे दे देकर अपने दिल को बहला लेता हूँ
चाँद निकले तो ईद ना निकले तो दीवाली मना लेता हूँ
जब तेरी यादो के काले साए सताने आते हैं तो
छाव समझ कर उस साए को ओढ़ सो लेता हूँ
तेरे दिल पर कोई तकलीफ़ आ ना पाए ए सनम
इसलिए खुद को अमावस की रात का चाँद बना लेता हूँ
तुम इतने दूर हो गये की अब दिखाई ना देते
इन्ही ग़ज़लो को तुम्हारा रूप देकर खोज लेता हूँ
Ashwini Sharma
इन यादो ने मुझको बहुत कुछ सिखाया है
जिन बतो का डर था उन्हे करीब से दिखाया है
मैं प्यार के नही नफ़रत के काबिल हूँ
मेरे साथ रहकर उसने मुझे ये बताया है
ज़िंदगी से मुझे कभी शिकवा तो ना था
पर कई ज़ख़्म देकर मुझे आईना दिखाया है
मैं सोचता था तेरे खातिर तूफ़ानो से लड़ जाऊँगा
मैं कुछ भी नही उसके एहसानो ने ये जताया है
Ashwini Sharma
मैं अपने ख्वाबो को पूरा कर ना सका
उस पत्थर दिल को मैं पिघला ना सका
दिन रात जो रहता था साथ मेरे
उसी को मैं कभी पा ना सका
दिल मे उसके जागी नफ़रत इस कदर कि
प्यार मैं कितना करता हूँ, बतला ना सका
ना तो वो मेरा दोस्त था ना ही मेरा प्यार
वो जो था मेरे लिए मैं कभी जान ना सका
Ashwini Sharma
कभी हसी तो कभी आँसू बन जाते है
इश्क़ मे कैसे कैसे किस्से बन जाते है
सिर्फ़ और सिर्फ़ बाँटते रहे खुशियाँ
फिर भी हमारे हिस्से मे गम रह जाते हैं
वादा मिलता है हमेशा साथ निभाने का
लोग बिन बताए छोड़ कर चले जाते है
जो सपने देख कर खुश हुआ करते थे
रेत के घर की तरह पानी मे बह जाते है
जहा मुलाकात का सिलसिला रुकता ना था
उन रस्तो पर अब अकेले रह जाते है
वो ख्वाब जिन्हे सच करना था
अब रात मे आकर रुला जाते है
इश्क़ मे कैसे कैसे किस्से बन जाते है
Ashwini Sharma
एक गाँव
गाँव मे घर के बाहर एक पेड़
जिसके नीचे बैठ कर वो मुझे मेसेज किया करती थी
घर के आँगन मे बना एक चूल्हा
जिसपे सिक्ति रोटियो की तस्वीर भेजा करती थी
घर से तोड़ा आगे बने हुए वो खेत
जहा अपनी फोटोग्रफी करके मुझे भेजा करती थी
केसा मौसम है केसी हवा है
सब कुछ बतलाया करती थी
वो गाँव अब भी वही है
वो पेड़ भी, वो चूल्हा वो खेत और वो मौसम भी
बस बदल गयी तो वो लड़की
जो है तो यही कही पर अब मैं उसके लिए नही हूँ
जो की उसके लिए कभी बहुत कुछ था
पर मैं ख़त्म हो गया
वो आगे बढ़ गया और मैं वही रह गया
शायद उसे यही मंजूर था
Ashwini Sharma
ना तुम मुस्कुराते ना ये बात होती
उस चाँदनी रात यूँ आँखे चार ना होती
छत तो टिकी रहती है दीवारो के सहारे
चार दीवारो के बीच ये तन्हाई ना होती
ना तुम टूटते ना हम टूटकर चाहते
अगर तेरे मेरे दिल की दोस्ती ना होती
दिल भी साफ रहता बगैर नफ़रत के
गर मुझसे प्यार की अगुवाई ना होती
मैं भी किसी से गिला शिकवा कर पाता
जो मुझमे तुझे पाने की चाहत ना होती
ना तुम मुस्कुराते ना ये बात होती
Ashwini Sharma